जयंती पापनाशिनी : देवकन्या का दैवत्व भाग – २

प्रत्युत्तर में स्मित बिखेरती हुए जयंती ने कहा,”अब आप शत्रुपक्ष के कुलगुरु के गुणों का बखान एकाएक अकारण तो नहीं करने लगेंगे। कहिये, ऐसा क्या किया भार्गव शुक्राचार्य ने जो समर विजयी मेरे पिता के ललाट पर उद्विग्नता की ऐसी रेखाएं खिंच आईं हैं। मैं उन रेखाओं को मिटाने के लिए क्या कर सकती हूँ?” “किया नहीं किंतु करने जा रहे हैं, भीषण अनर्थ!” देवेन्द्र ने जयंती को प्रारंभ से अंत तक पूरी कथा सुना दी। “ओह तो मृतसंजीवनी प्राप्त कर वह जैसे ही , वैसे ही दैत्य संधि तोड़कर स्वर्ग पर आक्रमण कर देंगे। विद्या के आश्रय से वे पुनर्जीवित होते रहेंगे और हम क्रमशः क्षीण होते जाएंगे। इतना भीषण षड्यंत्र! वे मात्र स्वर्ग पर अधिकार पाकर चुप नहीं बैठेंगे, मर्त्यलोक पर भी उनकी मनमानी और क्रूरता बढ़ेगी। कर्तव्यहीन निरंकुश सत्ता विश्व में विप्लव ही लाती है। इसे कैसे रोका जा सकता है, पिताजी?” “तू! तू रोक सकती है इसे!” “मैं! लेकिन कैसे? मैं तो आप जैसी शक्तिसंपन्न नहीं हूं। न ही जयंत भैया जैसी युद्धकुशल या फिर अग्नि, सूर्य, वरुण जैसी तेजयुक्त हूं। मैं कैसे रोकूंगी?” “क्योंकि तू भगवती का अंश है, उनका प्रसा...